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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान प्रथम प्रश्नपत्र - उच्चतर पोषण एवं संस्थागत प्रबन्धन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2693
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान प्रथम प्रश्नपत्र - उच्चतर पोषण एवं संस्थागत प्रबन्धन

अध्याय - 5

लिपिड्स

(Lipids)

प्रश्न- वसा से आप क्या समझते हैं? वसा प्राप्ति के प्रमुख स्रोत एवं उपयोगिता का वर्णन कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
वसा प्राप्ति के स्रोत लिखिए। वसा की अधिकता से हानि को समझाइए।

उत्तर -

वसा का अर्थ

वसा प्रकृति से प्राप्त उन भोज्य-तत्वों के समूह को कहते हैं, जो पानी में अघुलनशील होते हैं, चिकनापन लिए होते हैं तथा विभिन्न कार्बनिक द्रवों में घुलनशील होते हैं, ये भोज्य-तत्व जन्तु तथा वनस्पति दोनों माध्यमों से प्राप्त होते हैं। तेल व वसा वनस्पति तथा जन्तु दोनों ही स्रोतों से प्राप्त होते हैं। कुछ ऐसे यौगिक भी होते हैं जो मूलतः वसा नहीं होते परन्तु देखने में बहुत कुछ वसा जैसे ही लगते हैं। इन सभी वसा से मिलते-जुलते पदार्थों को लिपिड्स कहा जाता है।

कार्बोहाइड्रेट्स की ही भाँति वसा भी भोजन के आवश्यक पोषक तत्त्व हैं। वसा शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाले महत्वपूर्ण स्रोत हैं। इनका ऊर्जा मूल्य कार्बोहाइड्रेट्स के ऊर्जा मूल्य से भी दुगुना होता है। प्राय: कार्बोहाइड्रेट्स की अपेक्षा दोगुनी मात्र से भी अधिक ऊर्जा उत्पन्न करती है कार्बोहाइड्रेड के 1 ग्राम से जहाँ 4 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है, वहीं एक ग्राम वसा से 9 कैलोरी ऊर्जा की प्राप्ति होती है।

वसा एक कार्बनिक यौगिक है। वसा व लिपिड्स का संघटन कार्बन (C), हाइड्रोजन (H) तथा ऑक्सीजन (O) तत्वों के रासायनिक संयोग से होता है। वसा का निर्माण किसी एक ग्लिसरॉल पदार्थ तथा एक वसीय अम्ल (Fatty acid) के संयोजन से होता है। वसा में कार्बन व हाइड्रोजन की अपेक्षा ऑक्सीजन तत्व काफी कम मात्रा में संयुक्त होते हैं। हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन का अनुपात जहाँ कार्बोहाइड्रेट में 2 : 1 होता है, वहीं वसा में यह अनुपात 3 : 1 से 7 : 1 तक होता है। सभी वसाओं की ज्वलन शक्ति बहुत अधिक होती है। सम्भवतः वसा के इसी गुण के कारण इसमें अधिक ऊर्जा देने की भी शक्ति होती है।

वसायुक्त पदार्थ यदि 20°C पर भी ठोस ही बने रहें तो वह वसा का रूप है, जबकि यदि इसी तापक्रम पर तरल मात्रा में रहे तो यह 'तेल' कहलाता है। अधिकांश ठोस वसाओं का गलनांक बिन्दु 35-36° पर होता है।

लिपिड्स

लिपिड्स का अध्ययन भी सामान्यतया वसाओं के साथ ही किया जाता है। यह वसा के समान दिखने वाला ही एक पदार्थ है जो वसा घोलकों जेसे पैट्रोलियम, ईथर, क्लोरोफॉर्म, बेन्जीन, ऐल्कोहॉल तथा ऐसीटोन आदि में तथा स्वयं वसा में घुलनशील है। लिपिड्स एक प्रकार के एस्टर हैं, जो ग्लिसरॉल तथा वसीय अम्लों के संयोग से बनते हैं। वसीय अम्ल दो प्रकार के होते हैं-

(1) संतृप्त वसीय अम्ल - जिन वसीय अम्लों में कार्बन के अणु के बराबर संख्या में हाइड्रोजन के अणु उपस्थित रहते हैं, उनको संतृप्त वसीय अम्ल कहा जाता है; जैसे ब्यूटाइरिक एसिड, पामिटिक एसिड, स्टियरिक एसिड तथा कैप्रीलिक एसिड आदि।

(2) असंतृप्त वसीय अम्ल - वे वसीय अम्ल, जिनमें हाइड्रोजन तथा कार्बन अणुओं की संख्या असमान होती है अथवा हाइड्रोजन अणुओं की संख्या कार्बन अणुओं की संख्या से कम होती है, असंतृप्त वसीय अम्ल कहलाते हैं जैसे लिनोलिक एसिड, ओलिक एसिड तथा एरैकिडोनिक अम्ल आदि।

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(1) साधारण लिपिड्स (Simple Lipids) - इन्हें सरल या उदासीन लिपिड्स भी कहते हैं। सरल लिपिड्स विभिन्न एल्कोहलों के साथ बनाये गये अम्लों के ईस्टर (Esters) को कहते हैं।

(i) वसायें या तेल (Fats or Oils) - वसीय अम्लों के ग्लिसरॉल के साथ बनाये गये ईस्टर्स इस वर्ग में आते हैं। साधारण तापक्रम (20°C) पर ठोस अवस्था में वसा कहलाता है तथा द्रव अवस्था में वसा को तेल कहते   हैं।
(II) मोम (Wax) -
वसीय अम्लों के मोनोहाइड्रिक तथा डाइहाड्रिक एल्कोहल्स के साथ ईस्टर्स मोम कहलाते हैं। मोम का अणु भार काफी होता है।

(2) यौगिक लिपिड्स (Compound Lipids) - जब वसा के साथ अन्य पदार्थ भी उपस्थित होते हैं तो उसे यौगिक लिपिड्स कहते हैं; जैसे- फास्फोलिपिड्स तथा ग्लाइकोलिपिड्स।

(i) फास्फोलिपिड्स (Phospholipids) - फास्फोलिपिड्स वसीय अम्लों, एल्कोहल, फास्फोरिक अम्ल तथा नाइट्रोजन युक्त क्षार के मिलने से बनते हैं; उदाहरणार्थ - लेसिथिन्स (Lecithins), सेफेलिन्स (Cephalins), प्लाज्मोलोजन्स (Plasmologens), स्फिन्गोमाइलिन (Sphinogomyelin), सल्फोलिपिड्स (Sulpholipids), प्रोटियोलिपिड्स (Proteolipids) आदि।
(II) ग्लाइकोलिपिड्स (Glycolipids) –
ये शर्करायुक्त लिपिड्स होते हैं। इनमें वसीय अम्ल के साथ गेलेक्टोज शर्करा पाई जाती है। उदाहरण किरोसिन व सेरिब्रोन।
(IIi) प्रोटियोलिपिड्स (Proteolipids) -
इनमें लिपिड्स के साथ प्रोटीन के अणु जुड़े होते हैं इन्हें लाइपोप्रोटीन्स भी कहते हैं।

(3) व्युत्पादित लिपिड्स (Derived Lipids) - सरल तथा यौगिक लिपिड्स के जल - अपघटन के बाद बने पदार्थ इस समूह में आते हैं; उदाहरणार्थ- वसीय अम्ल, नाइट्रोजन युक्त क्षार, ग्लिसरॉल आदि।

(4) स्टीरॉल्स (Sterols) - मिश्रित चक्रीय रचना (Multiple Cyclic Structure) साइक्लोपैन्टेनो पर हाइड्रोफिनैनर्थिन से सम्बन्धित कार्बनिक यौगिक इस समूह में आतें हैं। कोलेस्टीरॉल (Cholesterol) तथा अरगोस्टीरॉल आदि इस समूह के मुख्य सदस्य हैं तथा इनका पोषण विज्ञान में महत्त्वपूर्ण स्थान है। स्टीरॉल्स भी दो प्रकार के होते हैं-

(a) कोलेस्टीरॉल (Cholesterol) - यह जीवधारियों की वसा की मुख्य स्टेरॉल (Sterol) है। पौधों की वसा में कोलेस्टीरॉल (Cholesterol) नहीं पाया जाता। स्टीरॉल्स अनेक शारीरिक महत्वपूर्ण उत्पादनों; जैसे-पित्त   अम्ल, कतिपय लिंगीय हार्मोन तथा विटामिन 'डी' को प्रभावित करता है।
(b) आर्गेस्टरोल (Ergasterol) -
यह वनस्पति द्वारा प्राप्त होती है। यह विटामिन 'डी' के चयापचय में बहुत सहायता करता है।

वसा की प्राप्ति के स्रोत
(Sources of Fats)

वसा वनस्पति व जन्तु दोनों ही वर्गों से प्राप्त की जा सकती है। वसा प्राप्ति के साधनों को हम दो वर्गों में विभाजित करते हैं-

(1) पशुजन्य स्रोत (Animal Fat Sources) (2) वानस्पतिक स्रोत (Plant Fat Sources)

(1) पशुजन्य स्रोत - वसा के पशुजन्य स्रोत के अन्तर्गत दूध, दूध से बने पदार्थ, मांस, मुर्गी के अण्डे, अण्डे की जर्दी वाला भाग आदि भोज्य पदार्थ आते हैं। पशुओं के दूध में वसा पायसीकृत रूप में विद्यमान रहती है।

(2) वानस्पतिक स्रोत - वानस्पतिक वसा असली, सरसों, मूँगफली, तिल, बिनौला आदि के तेलों तथा विभिन्न प्रकार के बीजों तथा सूखे मेवों में पायी जाती है। इसके अतिरिक्त कुछ अनाजों, सोयाबीन आदि में भी अल्प मात्रा में वसा पायी जाती है।

जिन पदार्थों में वसा प्राप्त की जाती है, उनमें से कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं, जिनमें स्पष्ट रूप से वसा स्निग्ध रूप में पायी जाती है इन पदार्थों को वसा का दृश्य स्रोत कहते हैं; जैसे- मक्खन, मलाई, घी तथा कुछ अन्य वानस्पतिक तेल आदि।

कुछ वसायुक्त पदार्थों में वसा स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं पड़ती जबकि वे उन पदार्थों में उपस्थित रहती है ऐसे पदार्थों को वसा का अदृश्य स्रोत कहा जाता है; जैसे-सूखे मेवे, माँस, मछली, मिठाइयाँ आदि।

दूध तथा दूध के उत्पाद वसा प्राप्ति के अच्छे स्रोत हैं। दूध की मलाई में 20-40% के लगभग वसा पायी जाती है। सूखे मेवों में भी वसा प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। मूँगफली वसा प्राप्ति का एक सस्ता व सुलभ साधन है। जन्तु स्रोतों जैसे घी, मक्खन, मलाई, तेलों आदि में हमारे

शरीर के लिए आवश्यक वसा का केवल 40% भाग ही प्राप्त होता है तथा वसा के वानस्पतिक स्रोतों जैसे अनाज, सूखे मेवों, दूध, पनीर आदी से केवल 30% वसा की उपलब्धि होती है। मूँगफली से 50% तक वसा प्राप्त हो जाती है।

वसा के गुण - विभिन्न प्रकार की वसा पानी में घुलनशील परन्तु क्लोरोफार्म, ईथर, कार्बन टेट्रा क्लोराइड आदि कार्बनिक घोलकों में घुलनशील होती है-

(1) ताप का प्रभाव - वसा को अधिक ताप पर अधिक समय तक गर्म करने से वे अपने यौगिकों में विभक्त हो जाती है। ग्लिसरॉल तथा वसीय अम्ल अलग-अलग हो जाते हैं इसके साथ ही एक्रोलिन नामक पदार्थ बनता है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है इसलिए घी या तेल को इतना अधिक गर्म नहीं करना चाहिए कि तेज धुआँ निकलने लगे।

(2) रैनसिडिटी - वसाओं को अधिक समय तक रखने से या खुला रखने से उसमें एक विशेष गन्ध आने लगती है। यह गन्ध भोजन का स्वाद भी खराब करती है, साथ ही स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी होती है। यह क्रिया रैनसिडिटी (Rancidity) कहलाती है। इसका कारण वसा का जलीय विश्लेषण या ऑक्सीकरण होता है जिससे वसा से एल्डिहाइड तथा कीटोन्स बन जाते हैं। ये ही पदार्थ विशेष गन्ध के लिए उत्तरदायी होते हैं।

(3) पायसीकरण - यदि वसा को पानी के साथ मिलाकर फेंटा जाय तो वसा के कण अति सूक्ष्म कणों में विभक्त होकर पानी पर तैरने लगते हैं। यह क्रिया पायसीकरण (Emulsification) कहलाती है। पायस वसा (Emulsified Fat) का विशेष महत्व होता है। उसका पाचन संस्थान में पाचन व अभिशोषण सरलता से हो जाता है। दूध, दही, अण्डा आदि में वसा पायस के रूप में रहती है।

(4) साबुनीकरण - वसा की अगर किसी क्षार के साथ क्रिया करवायी जाय तो साबुन का निर्माण होता है। यह क्रिया साबुनीकरण (Saponification) कहलाती है। शरीर में कभी-कभी असामान्य स्थिति में वसा आँत्र रस से मिलकर, जोकि क्षारीय होता है, साबुन का निर्माण करता है। यह साबुन मल के रूप में बाहर निकल जाता है।

शरीर में वसा के कार्य

(1) ऊर्जा का साधन - भोज्य पदार्थों में वसा ऊर्जा का सबसे अधिक सान्द्रित रूप हैं। कार्बोहाइड्रेट व प्रोटीन की अपेक्षा वसा का एक ग्राम दुगुनी से भी अधिक ऊर्जा देता है। वसा का 1 ग्राम 9 कैलोरी ऊर्जा देता है जबकि कार्बोहाइड्रेट व प्रोटीन का 1 ग्राम लगभग 4 कैलोरी ऊर्जा देता है। इसके अतिरिक्त जन्तु तथा मनुष्यों में आरिक्षत ऊर्जा का सर्वोच्च भण्डार शरीर के वसा संग्रहों में मिलता है जो ऊर्जा की आवश्यकता होने पर शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है। अगर शरीर में ऊर्जा का संग्रह नहीं हो पाया तो हमको हर थोड़े समय पश्चात् ऊर्जा के लिए भोजन की आवश्यकता होती है।

(2) शरीर के ताप का नियमीकरण - आहार के माध्यम से ग्रहण की गई वसा शोषित होकर, पूरे शरीर में त्वचा के नीचे एक तह के रूप में एकत्र हो जाती है। वसा की यह तह ताप की कुचालक होती है। इस स्थिति में पर्यावरण में ताप के बढ़ जाने या घट जाने पर भी शरीर के आन्तरिक ताप पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ता तथा शरीर का तापक्रम सामान्य बना रहता है। इस प्रकार वसा हमारे शरीर के तापक्रम को नियमित बनाए रखने के लिए भी उपयोगी है।

(3) कोमल अंगों की रक्षा - वसा शरीर के विभिन्न नाजुक अंगों; जैसे - वृक्क या गुर्दे, हृदय व तन्त्रिका तन्त्र को गद्दीनुमा रखना देकर बाहरी धक्कों से बचाता है। वसा ऊर्जा का संघनित्र साधन होने के कारण आवश्यक भोजन की मात्रा कम करता है। अत्यधिक क्रियाशील व्यक्ति यदि ऊर्जा के लिए कार्बोहाइड्रेट पर ही निर्भर करता है। तो उसे अधिक मात्रा में भोजन लेना पड़ता है।

(4) भूख देर से लगना (Satiely Value) - वसा शरीर में पाचक रसों के स्राव को कम करती है पाचक रस कम निकालने से पाचन क्रिया देर से होती है तथा भोजन पाचन अंगों में देर तक बना रहता हैं जिससे व्यक्ति भोजन की संतुष्टि अधिक समय तक महसूस करता है, जल्दी भूख नहीं लगती है। इसके अतिरिक्त वसा आमाश्य व आँत्र मार्ग को चिकनाहट प्रदान करती है।

(5) वसा में घुलनशील विटामिनों को प्राप्त करना - विटामिन 'ए' 'डी', 'ई' व 'के' के अवशोषण के लिए वसा की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त कुछ जन्तु वसायें; जैसे- कॉड लीवर आयल या मछली के जिगर का तेल, मक्खन व घी से विटामिन 'ए' व 'डी' की प्राप्ति होती है। विभिन्न वनस्पति वसाओं से विटामिन 'ई' व 'के' की प्राप्ति होती है।

(6) प्रोटीन की बचत - वसा शरीर की प्रोटीन की बचत करती है। यदि शरीर में वसा की कमी होती है तो ऊर्जा प्रोटीन से ली जायेगी, जिससे प्रोटीन अपना मुख्य निर्माण का कार्य नहीं कर पायेगी। इस तरह वसा प्रोटीन की बचत करती है।

(7) सुस्वादिष्टा (Palatability) - वसा से भोजन का स्वाद बढ़ जाता है व एक विशेष सुगन्ध आ जाती है। वसा द्वारा भोजन पकाने में विभिन्नता आ जाती है।

(8) आवश्यक वसा अम्लों का प्राप्त करना-वसा में कुछ आवश्यक वसीय अम्ल उपस्थित होते हैं; जैसे- लिनोलिक, लिनोलेनिक व आर्कोडोनिक अम्ल। ये अम्ल शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक होते हैं।

वसा की कमी से हानि - वसा के संतृप्त वसीय अम्ल के आहार के कम होने से साधारण रूप से कोई हानि नहीं होती है परन्तु आवश्यक वसीय अम्ल विशेष रूप से लिनोलिक तथा आर्कीडोनिक की शरीर में कमी होने से वृद्धि रुक जाती है, प्रजनन अंग ठीक कार्य नहीं करते हैं, त्वचा की बीमारी (Dermanitis) हो जाती है। बच्चे व प्रौढ़ व्यक्तियों में एक दूसरी त्वचा की बीमारी फ्राइनोडर्मा (Phrynoderma or Toad Skin) हो जाती है। इस बीमारी में पीठ, पेट तथा टाँगों के बाहरी तरफ छोटे-छोटे नुकीले दाने निकल आते हैं। पहले वैज्ञानिकों का मत था कि फ्राइनोडर्मा के उपचार के लिए कॉड लिवर ऑयल या विटामिन 'ए' देना चाहिए। पर गोपालन तथा साथियों ने नये अध्ययनों से बताया कि फ्राइनोडर्मा का उपचार आवश्यक वसीय अम्लयुक्त तेलों से तेजी से होता है। इसके साथ में विटामिन बी काम्पलेक्स की आवश्यकता होती है।

वसा की अधिकता से हानि - वसा को भोजन के द्वारा अधिक लेने से वसा शरीर में त्वचा के नीचे एकत्र होने लगती है जिससे शरीर का भार बहुत अधिक बढ़ जाता है और यही मोटापा की स्थिति स्थूलता अथवा ओबेसिटी (Obesity) कहलाती है। मोटापा अपने आप में रोग होने के अलावा दूसरे रोगों में भी वृद्धि करता है। डायबिटीज रोग, जिसे मधुमेह अथवा शक्कर की बीमारी भी कहते हैं, मोटापे की स्थिति में विशेष रूप से तीव्र प्रभाव रखता है। डायबिटीज रोग दुबले-पतले व्यक्ति के शरीर में दबी हुई स्थिति में रहता है परन्तु अगर वही व्यक्ति अधिक वसा का सेवन करने लगे, तो मोटापा आ जाने पर रोग का प्रभाव भी बढ़ जाता है।

वसा की अधिकता के रोग कॉलस्टॉज के अधिक लेने के कारण अधिक होते हैं। कॉलेस्ट्राल, जो कि जन्तु स्ट्रॉल है, दूध, क्रीम, मक्खन, घी, मलाई, माँस, अण्डा इत्यादि में पाया जाता है। हमारी भोजन प्रवृत्ति में आजकल माँस, मुर्गा, अण्ड, घी, क्रीम की मात्रा बराबर बढ़ती जा रही है जिससे रक्त में कॉलेस्ट्रॉल की मात्रा भी बढ़ जाती है। यह कॉलेस्ट्रॉल रक्तवाहिनियों में अन्दर की तरफ जमने लगता है जिससे रक्तवाहिनियाँ संकुचित हो जाती हैं जिसके परिणामस्वरूप रक्त का दबाव (Blood Pressure) बढ़ जाता है। रक्त में कॉलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाना एथिरोस्किरोसिस कहलाता है। रक्त दबाव बढ़ने तथा एथ्रिरोस्किरोसिस के कारण हृदय में रक्त परिवहन ठीक तरह नहीं हो पाता है जिससे विभिन्न हृदय सम्बन्धी बीमारियाँ हो जाती है अगर जन्तु वसा तथा संतृप्त वसा का सेवन कम किया जाये तो इन रोगों से बचा जा सकता है।

ओबेसिटी रोग के कारण गुर्दे भी अपना कार्य ठीक तरह नहीं कर पाते हैं जिससे शरीर में वर्ण्य पदार्थ एकत्र होने लगते हैं। यह स्थिति भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है।

ओबेसिटी रोग दूर करना अच्छे स्वास्थ्य के लिए ओबेसिटी दूर करना बहुत आवश्यक हो जाता है। इसके लिए व्यक्ति को अपने आहार में वसा की मात्रा बहुत कम लेनी चाहिए। तले हुए अधिक वसायुक्त भोज्य पदार्थ तथा अधिक वसा से बनी सब्जियों को नहीं खाना चाहिए। संतृप्त वसा; जैसे-शुद्ध या वनस्पति घी का सेवन विशेष रूप स कम करना चाहिए क्योंकि इसमें उपिस्थत कॉलेस्ट्रॉल की अधिकता एथ्रिरोस्किरोसिस रोग उत्पन्न कर देता है। दूसरे जन्तु भोजन जिनमें वसा की मात्रा अधिक होती है, नहीं लेने चाहिए। पूर्ण दूध की अपेक्षा मक्खन निकला दूध स्थूल व्यक्ति को लेना चाहिए।

परन्तु यह ध्यान रखन चाहिए कि वसा व ऊर्जा की कमी के साथ-साथ खनिज तत्व विटामिन की अच्छी मात्रा शरीर में पहुँचती रहे। इसके लिए अच्छी मात्रा में रसीले फल, ऊर्जा वाली सब्जियाँ लेते रहना चाहिए। प्रोटीन की आवश्यकता भी निरन्तर पूरी करते रहना चाहिए। बहुत-से व्यक्ति अपने आपको पतला करने के लिए अज्ञानतावश कम मात्रा में आलू, चावल या रोटियाँ आदि ही खाते हैं। ऐसी स्थिति में ऊर्जा तो उन्हें पूरी मिलती है पर शरीर में विटामिन, प्रोटीन व खनिज तत्वों की कमी हो जाती है जो कि कुपोषण की स्थिति उत्पन्न कर देती है इसलिए फल के रस व सब्जियाँ, मक्खन निकले दूध की अच्छी मात्रा लेते हुए ऊर्जायुक्त भोज्य पदार्थ * कम लेने चाहिए।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- दैनिक आहारीय मात्राओं से आप क्या समझते हैं? आर.डी.ए. का महत्व एवं कार्य बताइए।
  2. प्रश्न- आहार मात्राएँ क्या हैं? विभिन्न आयु वर्ग के लिये प्रस्तावित आहार मात्राओं का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- संदर्भित महिला व पुरुष को परिभाषित कीजिए एवं पोषण सम्बन्धी दैनिक आवश्यकताओं का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- दैनिक प्रस्तावित मात्राओं से आप क्या समझते हैं? दैनिक प्रस्तावित मात्राओं को बनाते समय ध्यान रखने योग्य आहारीय निर्देशों का वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- गर्भावस्था में कौन-कौन से पौष्टिक तत्व आवश्यक होते हैं? समझाइए।
  6. प्रश्न- स्तनपान कराने वाली महिला के आहार में कौन से पौष्टिक तत्वों को विशेष रूप से सम्मिलित करना चाहिए।
  7. प्रश्न- एक गर्भवती स्त्री के लिये एक दिन का आहार आयोजन करते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगी?
  8. प्रश्न- एक धात्री स्त्री का आहार आयोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
  9. प्रश्न- दैनिक प्रस्तावित आवश्यकता की विशेषताएँ बताइये।
  10. प्रश्न- प्रस्तावित दैनिक आवश्यकता के निर्धारण का आधार क्या है?
  11. प्रश्न- शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्व कौन-कौन से हैं? इन तत्वों को स्थूल पोषक तत्व तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों में वर्गीकृत कीजिए।
  12. प्रश्न- भोजन क्या है?
  13. प्रश्न- उत्तम पोषण एवं कुपोषण के लक्षणों में क्या अन्तर है?
  14. प्रश्न- हमारे लिए भोजन क्यों आवश्यक है?
  15. प्रश्न- शरीर में जल की क्या उपयोगिता है
  16. प्रश्न- क्या जल एक स्थूल पोषक तत्व है?
  17. प्रश्न- स्थूल पोषक तत्व तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों में अंतर बताइये।
  18. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट किसे कहते हैं? इसकी प्राप्ति के स्रोत तथा उपयोगिता बताइये।
  19. प्रश्न- मानव शरीर में कार्बोहाइड्रेट की कमी व अधिकता से क्या हानियाँ होती हैं?
  20. प्रश्न- आण्विक संरचना के आधार पर कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण किस प्रकार किया जा सकता है? विस्तारपूर्वक लिखिए।
  21. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट का मानव शरीर में किस प्रकार पाचन व अवशोषण होता है?
  22. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट की उपयोगिता बताइये।
  23. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट क्या है? इसके प्राप्ति के स्रोत बताओ।
  24. प्रश्न- प्रोटीन से क्या तात्पर्य है? मानव शरीर में प्रोटीन की उपयोगिता बताइए।
  25. प्रश्न- प्रोटीन को वर्गीकृत कीजिए तथा प्रोटीन के स्रोत तथा कार्य बताइए। प्रोटीन की कमी से होने वाले रोगों के बारे में भी बताइए।
  26. प्रश्न- प्रोटीन के पाचन, अवशोषण व चयापचय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  27. प्रश्न- प्रोटीन का जैविक मूल्य क्या है? प्रोटीन का जैविक मूल्य ज्ञात करने की विधियाँ बताइये।
  28. प्रश्न- प्रोटीन की दैनिक जीवन में कितनी मात्रा की आवश्यकता होती है?
  29. प्रश्न- प्रोटीन की अधिकता से क्या हानियाँ हैं?
  30. प्रश्न- प्रोटीन की शरीर में क्या उपयोगिता है?
  31. प्रश्न- प्रोटीन की कमी से होने वाले प्रभाव लिखिए।
  32. प्रश्न- वसा से आप क्या समझते हैं? वसा प्राप्ति के प्रमुख स्रोत एवं उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
  33. प्रश्न- संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये - वसा का पाचन एवं अवशोषण।
  34. प्रश्न- वसा या तेल का रासायनिक संगठन बताते हुए वर्गीकरण कीजिए।
  35. प्रश्न- वसा की उपयोगिता बताओ।
  36. प्रश्न- वसा के प्रकार एवं स्रोत बताओ।
  37. प्रश्न- वसा की विशेषताएँ लिखिए।
  38. प्रश्न- पोषक तत्व की परिभाषा दीजिए। सामान्य मानव संवृद्धि में इनकी भूमिका का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- विटामिनों से क्या आशय है? इनके प्रकार, प्राप्ति के साधन एवं उनकी कमी से होने वाले रोगों के विषय में विस्तारपूर्वक लिखिए।
  40. प्रश्न- विटामिन
  41. प्रश्न- विटामिन 'ए' क्या है? विटामिन ए की प्राप्ति के साधन तथा आहार में इसकी कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- विटामिन डी की प्राप्ति के साधन बताइये।
  43. प्रश्न- विटामिन सी की कमी से क्या हानियाँ हैं?
  44. प्रश्न- विटामिन डी की दैनिक प्रस्तावित मात्रा बताइये।
  45. प्रश्न- वसा में घुलनशील व जल में घुलनशील विटामिनों में क्या अन्तर है?
  46. प्रश्न- खनिज तत्वों से आप क्या समझते है? खनिज तत्वों का कार्य बताइए।
  47. प्रश्न- फॉस्फोरस एवं लोहे की प्राप्ति, स्रोत, कार्य व इसकी कमी से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।
  48. प्रश्न- कैल्शियम की प्राप्ति के साधन कार्य तथा इसकी कमी से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।
  49. प्रश्न- जिंक की कमी से शरीर को क्या हानि होती है? इनकी प्राप्ति के साधन उदाहरण सहित समझाइए।
  50. प्रश्न- आयोडीन का महत्व बताइये।
  51. प्रश्न- सोडियम का भोजन में क्या महत्व है?
  52. प्रश्न- ताँबे का क्या कार्य है?
  53. प्रश्न- शरीर में फ्लोरीन की भूमिका लिखिए।
  54. प्रश्न- शरीर में मैंगनीज का महत्व बताइये।
  55. प्रश्न- शरीर में कैल्शियम का अवशोषण तथा चयापचय की संक्षिप्त में व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- आहारीय रेशे का क्या अर्थ है? आहारीय रेशों का संगठन, वर्गीकरण एवं लाभ लिखिए।
  57. प्रश्न- भोजन में रेशेदार पदार्थों का क्या महत्व है? रेशेदार पदार्थों के स्रोत एवं प्रतिदिन की आवश्यकता का वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- फाइबर की कमी शरीर पर क्या प्रभाव डालती है?
  59. प्रश्न- फाइबर की अधिकता से शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है?
  60. प्रश्न- विभिन्न खाद्य पदार्थों में फाइबर की मात्रा को तालिका द्वारा बताइए।
  61. प्रश्न- भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन करिए।
  62. प्रश्न- भोजन पकाने की विभिन्न विधियाँ पौष्टिक तत्वों की मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? विस्तार से बताइए।
  63. प्रश्न-
  64. प्रश्न-
  65. प्रश्न- भोजन विषाक्तता पर टिप्पणी लिखिए।
  66. प्रश्न- भूनना व बेकिंग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  67. प्रश्न- भोजन में मसालों की उपयोगिता बताइये।
  68. प्रश्न- खाद्य पदार्थों में मिलावट किन कारणों से की जाती है? मिलावट किस प्रकार की जाती है?
  69. प्रश्न- 'भोज्य मिलावट' क्या होती है, समझाइये।
  70. प्रश्न- खमीरीकरण की प्रक्रिया से बनाये जाने वाले पदार्थों का वर्णन कीजिए तथा खमीरीकरण प्रक्रिया के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
  71. प्रश्न- अनुपूरक व विस्थापक पदार्थों से आपका क्या अभिप्राय है? उनका विस्तृत वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- विभिन्न खाद्य पदार्थों का फोर्टीफिके शनकि स प्रकार से किया जाता है? वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- भोजन की पौष्टिकता को बढ़ाने वाले विभिन्न तरीके क्या होते हैं? विवरण दीजिए।
  74. प्रश्न- अंकुरीकरण तथा खमीरीकरण किस प्रकार से भोजन के पौष्टिक मूल्य को बढ़ाते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- खमीरीकरण की प्रक्रिया किन बातों पर निर्भर करती हैं।
  76. प्रश्न- खमीरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  77. प्रश्न- आहार आयोजन से आप क्या समझती हैं? आहार आयोजन का महत्व बताइए।
  78. प्रश्न- 'आहार आयोजन' करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
  79. प्रश्न- आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- विभिन्न आयु वर्गों एवं अवस्थाओं के लिए निर्धारित आहार की मात्रा की सूचियाँ बनाइए।
  81. प्रश्न- एक खिलाड़ी के लिए एक दिन के पौष्टिक तत्वों की माँग बताइए व आहार आयोजन कीजिए।
  82. प्रश्न- एक दस वर्षीय बालक के पौष्टिक तत्वों की मांग बताइए व उसके स्कूल के लिए उपयुक्त टिफिन का आहार आयोजन कीजिए।
  83. प्रश्न- 'आहार आयोजन करते हुए आहार में विभिन्नता का भी ध्यान रखना चाहिए।' इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
  84. प्रश्न- एक किशोर लड़की के लिए पोषक तत्वों की माँग बताइए।
  85. प्रश्न- एक किशोरी का एक दिन का आहार आयोजन कीजिए तथा आहार तालिका बनाइये। किशोरी का आहार आयोजन करते समय आप किन पौष्टिक तत्वों का ध्यान रखेंगे?
  86. प्रश्न- आहार आयोजन से आप क्या समझते हैं?
  87. प्रश्न- आहार आयोजन के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  88. प्रश्न- दैनिक प्रस्तावित मात्राओं के अनुसार एक किशोरी को कितनी ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
  89. प्रश्न- कैटरिंग की संकल्पना से आप क्या समझते हैं? समझाइये।
  90. प्रश्न- भोजन करते समय शिष्टाचार सम्बन्धी किन बातों को ध्यान में रखा जाता है?
  91. प्रश्न- भोजन प्रबन्ध सेवा (Catering Service) के विभिन्न प्रकारों को विस्तार से समझाइए।
  92. प्रश्न- एक गृहिणी अपने घर में किस प्रकार सुन्दर मेज सजाकर रखती है? समझाइए।
  93. प्रश्न- 'भोजन परोसना भी एक कला है।' इस कथन को समझाइए।
  94. प्रश्न- केटरिंग सेवाओं की अवधारणा और सिद्धान्त समझाइये।
  95. प्रश्न- 'स्वयं सेवा' के लाभ तथा हानियाँ बताइए।
  96. प्रश्न- छोटे और बड़े समूह में परोसने की विधियों की तुलना कीजिये।
  97. प्रश्न- Menu से आप क्या समझते हैं? विभिन्न प्रकार के Menu को समझाइये।
  98. प्रश्न- बड़े समूह की भोजन व्यवस्था पर एक टिप्पणी लिखिए।
  99. प्रश्न- कैन्टीन का लेखा-जोखा कैसे रखा जाता है? समझाइए।
  100. प्रश्न- बड़े समूह को खाना परोसते समय आप कौन-कौन सी बातों का ध्यान रखेंगे तथा अपने संस्थान में एक लड़कियों के लिये कैंटीन की योजना कैसे बनाएंगे? विस्तारपूर्वक समझाइए।
  101. प्रश्न- खाद्य प्रतिष्ठान हेतु क्या योग्यताओं की आवश्यकता तथा प्रशिक्षण आवश्यक है? समझाइए।
  102. प्रश्न- बुफे शैली में भोजन किस प्रकार परोसा जाता है?
  103. प्रश्न- चक्रक मेन्यू क्या है?
  104. प्रश्न- 'पानी के जहाज (Ship) पर भोजन की व्यवस्था' इस विषय पर टिप्पणी करिये।
  105. प्रश्न- मेन्यू के सिद्धांत क्या हैं? विभिन्न प्रकार के मेन्यू के बारे में लिखिये।

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